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फेसबुक पर पंडिताई का दिखावा: आधुनिक अहंकार या आत्मप्रचार की होड़?

पंडिताई का प्रदर्शन या अध्यात्म का पतन?
सोशल मीडिया पर धार्मिकता की होड़ बनाम सच्चा कर्म

आजकल कुछ पंडित वर्ग के लोग फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर अपने कर्मकांड, यज्ञ और धार्मिक अनुष्ठानों की तस्वीरें और वीडियो शेयर कर स्वयं को ‘महान पंडित’ सिद्ध करने की कोशिश में लगे रहते हैं। इन पोस्ट्स का उद्देश्य कभी अपने ज्ञान का प्रदर्शन होता है, तो कभी यजमानों को आकर्षित करने की चालाकी।

परंतु प्रश्न उठता है—क्या सच्चा विद्वान अपनी अच्छाई का ढिंढोरा पीटता है?
उत्तर है: नहीं।
सच्चे विद्वान अपने कर्मों से बोलते हैं, न कि कैमरे और कैप्शन से।

ऐसे दिखावे में अक्सर रावण की तरह अहंकार प्रवेश कर जाता है—जो ज्ञान और शक्ति के बावजूद अंततः विनाश को प्राप्त होता है। कई भोले लोग इस बाहरी चमक से प्रभावित होकर ऐसे पंडितों के संपर्क में आ जाते हैं, यह सोचकर कि यह सब उनकी श्रेष्ठता का प्रमाण है। पर याद रखें—

“अगर किरदार में दम है, तो वक्त खुद लोगों को आपकी कीमत बता देगा।”

निष्कर्ष:
धार्मिक कार्य आडंबर नहीं, आत्मा की साधना है। पवित्र कर्मों को प्रचार की नहीं, निष्ठा की आवश्यकता होती है। समाज को चाहिए कि वह दिखावे से परे जाकर सच्चे चरित्र और साधना को पहचाने।

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