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गोमुख संकट में गंगा का उद्गम स्थल, जलवायु परिवर्तन से पीछे हट रहा है पवित्र ग्लेशियर

गोमुख

संकट में गंगा का उद्गम स्थल, जलवायु परिवर्तन से पीछे हट रहा है पवित्र ग्लेशियर

उत्तरकाशी, उत्तराखंड। गंगोत्री धाम से लगभग 18 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गोमुख, जहाँ से गंगा (भागीरथी) की उत्पत्ति मानी जाती है, अब जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से जूझ रहा है। वैज्ञानिकों के अनुसार गोमुख ग्लेशियर अब तक लगभग 18 किलोमीटर पीछे हट चुका है, और इसका आकार प्रतिवर्ष सिकुड़ता जा रहा है।

गोमुख तक पहुँचना एक कठिन यात्रा है—यहाँ कोई पक्की सड़क नहीं, केवल पथरीले, ऊबड़-खाबड़ रास्ते हैं। यात्रियों को चीड्वासा और भोजवासा होते हुए गोमुख तक पहुँचना होता है। समुद्र तल से 3,415 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह स्थान गंगोत्री ग्लेशियर क्षेत्र का हिस्सा है, जहाँ नन्दनवन, सतरंगी और बामक जैसे छोटे ग्लेशियर भी हैं।

गंगा का नया उद्गम?

शोधकर्ताओं ने पाया है कि गोमुख ग्लेशियर का एक बड़ा टुकड़ा टूटने से वहां एक झील बन गई है, जिससे गंगा की धाराएं अब एक नए मार्ग से—नन्दनवन ग्लेशियर से—प्रवाहित हो रही हैं। पहले जहां भागीरथी सीधे गोमुख से निकलती थी, अब वह बाईं ओर से प्रवाहित हो रही है। वैज्ञानिक चेतावनी दे रहे हैं कि यदि यह बदलाव यूं ही जारी रहा, तो गोमुख का पारंपरिक स्वरूप नष्ट हो सकता है।

पौराणिक और आध्यात्मिक महत्त्व

गोमुख का अर्थ ही है—गाय का मुख, और इसकी आकृति भी पर्वतों से घिरे क्षेत्र में गाय के मुख के समान दिखाई देती है। यहीं से गंगा का उद्गम माना गया है। यह स्थान पौराणिक रूप से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है; कहा जाता है कि यहीं महाराज भगीरथ ने तपस्या कर गंगा को पृथ्वी पर लाने का वर प्राप्त किया था। पास ही स्थित गौरी कुंड वह स्थान है जहाँ पार्वती जी ने भगवान शंकर को प्राप्त करने के लिए तप किया था।

सिद्धाश्रम और अदृश्य धाराएं

यहाँ के बारे में कई रहस्यमय मान्यताएँ भी प्रचलित हैं। गोमुख से कुछ ही दूरी पर स्थित सिद्धाश्रम को अदृश्य नगरी माना जाता है, जहाँ केवल साधना के उच्च स्तर पर पहुँचे व्यक्ति ही पहुँच सकते हैं। इसी क्षेत्र से बहने वाली ऋषिगंगा की एक धारा भी अदृश्य होकर कैलाश क्षेत्र की ओर जाती बताई जाती है।

गंगा की सात धाराएं

देवप्रयाग वह स्थान है जहाँ भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, भीलगंगा, ऋषिगंगा, सरस्वती और जाह्नवी जैसी सात नदियां मिलकर पवित्र गंगा बनती हैं। परंतु गोमुख का वैज्ञानिक और धार्मिक महत्त्व उसे एक अद्वितीय स्थान प्रदान करता है।

निष्कर्ष: प्रकृति और आस्था दोनों संकट में

गोमुख का पीछे हटना केवल एक पर्यावरणीय चेतावनी नहीं है, यह हमारी आस्था के मूल स्रोत पर मंडराता संकट भी है। वैज्ञानिक इस पर शोध कर रहे हैं, परंतु इसके संरक्षण के लिए जन-जागरूकता, पर्यावरणीय अनुशासन और सरकारी हस्तक्षेप की नितांत आवश्यकता है।

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